नासिका की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Nose)|hindi


नासिका की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Nose) 

नासिका की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Nose)|hindi


बाह्य नासिका छिद्र अन्दर की ओर दो अलग-अलग नासामार्गों (nasal passages or nasal fossae) में खुलते हैं। दोनों नासामार्ग एक लम्बे व खड़े नासापट (nasal septum) द्वारा एक-दूसरे से अलग रहते हैं। नासापट का अगला भाग उपास्थिमय (calcified) होता है परन्तु पिछले भाग में वोमर, एथमॉइड, मैक्सिली तथा पैलेटाइन अस्थियों के भाग होते हैं। 

नासामार्ग एक कठोर अर्थात् द्वितीयक तालु (hard or secondary palate) द्वारा मुखगुहिका से पृथक् रहते हैं। नासामार्ग अन्तःनासाछिद्र (internal nares) द्वारा ग्रसनी के नासा ग्रसनी भाग (naso-pharynx) में कण्ठद्वार (glottis) के समीप खुलते हैं। इन छिद्रों को कोएनी (choanae) भी कहते हैं। नासापथों के मुखगुहा से अलग होने के कारण स्तनधारियों में भोजन को चबाते समय भी साँस की क्रिया चलती रहती है।

नासिका की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Nose)|hindi



प्रत्येक नासामार्ग में आगे व नीचे से पीछे तथा ऊपर की ओर निम्नलिखित तीन भाग होते हैं:

1. प्रघाण (Vestibule)
2. घ्राण भाग (Olfactory region)
3. श्वसन भाग (Respiratory region)

1. प्रघाण (Vestibule): नासिका गुहा के अगले चौड़े भाग को प्रघाण (vestibule) कहते हैं। बाह्य नासाछिद्र इसमें खुलते हैं। इसमें बाल, सिबेसियस एवं स्वेद ग्रन्थियाँ होती हैं। इसके बाल कड़े एवं संवेदी होते हैं।

2. घ्राण भाग (Olfactory Region): यह नासिका गुहा का पिछला तथा ऊपरी भाग है। इसकी श्लेष्म उपकला में घ्राण कोशिकाएँ होती हैं। अतः यह भाग घ्राण अंग कहलाता है।

3. श्वसन भाग (Respiratory Region): यह नासिका गुहा का निचला हिस्सा होता है। नासिका गुहा की पार्श्व दीवार से तीन टरबाइनल अस्थियाँ या सर्पिल अस्थियाँ (turbinal bones) नासागुहा में उभरी रहती हैं। ये स्क्रॉल के समान घुमावदार तथा वलित (folded) होती हैं। इन वलनों पर श्लेष्म उपकला (mucous membrane) का महीन आवरण होता है। इसकी कोशिकाएँ रोमयुक्त (ciliated) होती हैं और म्यूकस का स्राव करती हैं जो नासिका गुहा को नम बनाये रखता है। इन अस्थियों के वलनों (folds) के बीच संकरे व घुमावदार वायु पथ बन जाते हैं। इन्हें शंखिकाएँ या मीएटाइ (conchae or meati) कहते हैं। इनके तीनों समूहों को ऊपर से नीचे की ओर क्रमशः ऊर्ध्ववर्ती (superior), मध्यवर्ती (middle) तथा अधोवर्ती (inferior) शंखिकाएँ कहते हैं।


नासिका के कार्य (Functions of Nose)

यद्यपि हम नासिका तथा मुख दोनों से ही साँस ले सकते हैं किन्तु नासिका द्वारा साँस लेने से निम्नलिखित लाभ हैं:

1. टरबाइनल अस्थियों द्वारा नासामार्गों को चक्करदार बनाने से इनका भीतरी क्षेत्रफल काफी अधिक बढ़ जाता है। इन लम्बे नासामार्गों से होकर गुजरते समय बाहरी हवा का ताप शरीर के ताप के बराबर आ जाता है।

2. नासामार्ग फिल्टर की तरह कार्य करते हैं क्योंकि ये धूल के कणों एवं सूक्ष्मजीवों को अन्दर आने वाली वायु में से अलग करते हैं जो म्यूकस अर्थात् श्लेष्म से उलझकर नासामार्गों में ही रह जाते हैं।

3. म्यूकोसा नासाकक्षों को नम रखती है जिससे फेफड़ों में पहुँचने वाली वायु नम हो जाती है।

4. श्नीडेरियन कला घ्राण संवेदी होती है।

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